मेरठ। उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले में एक लेखपाल द्वारा आत्महत्या का प्रयास करने की घटना ने प्रशासनिक व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। सुभाष सिंह नामक यह लेखपाल महज आठ महीने बाद सेवानिवृत्त होने वाले थे, लेकिन रिश्वत के आरोप में बिना पूरी जांच के हुए निलंबन ने उन्हें आत्मघाती कदम उठाने के लिए मजबूर कर दिया।
घटनाक्रम
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एक किसान ने सुभाष सिंह पर 5 लाख रुपये रिश्वत मांगने का आरोप लगाया
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जिलाधिकारी अभिषेक पांडेय ने बिना विस्तृत जांच के ही लेखपाल को निलंबित कर दिया
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निलंबन के बाद सुभाष सिंह गंभीर मानसिक तनाव में आ गए
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शनिवार को उन्होंने जहर खाकर आत्महत्या का प्रयास किया
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उन्हें तुरंत अस्पताल में भर्ती कराया गया जहां उनकी हालत गंभीर बनी हुई है
प्रतिक्रियाएं
मामले की गंभीरता को देखते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने तत्काल मेरठ मंडलायुक्त और डीआईजी को जांच के आदेश दिए हैं। लेखपाल संघ ने इस मामले में त्वरित और निष्पक्ष जांच की मांग की है।
उठते सवाल
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क्या बिना ठोस सबूतों के किसी कर्मचारी को निलंबित करना उचित है?
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क्या प्रशासनिक कार्रवाई में न्यायिक प्रक्रिया का पालन किया गया?
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कर्मचारियों के मानसिक स्वास्थ्य को लेकर प्रशासन की क्या जिम्मेदारी है?
पृष्ठभूमि
सुभाष सिंह के सहयोगियों के अनुसार, निलंबन के बाद वह लगातार मानसिक अवसाद में थे और “बिना सबूत के मुझे इतनी बड़ी सजा क्यों मिली?” जैसे प्रश्न पूछ रहे थे। उनके करीबियों का कहना है कि वह “मेरे पास बचा ही क्या है?” जैसी बातें कर रहे थे।
आगे की कार्रवाई
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मरीज की हालत पर नजर रखी जा रही है
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प्रशासनिक जांच जारी है
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लेखपाल संघ ने मामले में हस्तक्षेप की मांग की है
इस घटना ने एक बार फिर प्रशासनिक कार्यप्रणाली और कर्मचारियों के अधिकारों पर बहस छेड़ दी है। जहां एक ओर सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति पर चल रही है, वहीं इस मामले ने प्रक्रियात्मक न्याय की आवश्यकता को रेखांकित किया है।
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