नोएडा, नोएडा की चकाचौंध भरी जिंदगी के पीछे छिपे एक कड़वे सच ने सभी को झकझोर दिया है। शहर के एक वृद्ध आश्रम में बुजुर्गों के साथ हो रहे अमानवीय व्यवहार का मामला सामने आया है, जिसने प्रशासन और समाज दोनों को हिलाकर रख दिया है।
औचक निरीक्षण में खुलासा
राज्य महिला आयोग की सदस्य डॉ. मीनाक्षी भराला ने आनंद निकेतन वृद्ध सेवा आश्रम, सेक्टर-55, नोएडा का औचक निरीक्षण किया तो वहाँ के हालात देखकर सभी की आँखें नम हो गईं। निरीक्षण में पाया गया कि:
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बुजुर्गों को बेड पर बांधकर रखा जाता था।
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उन्हें समय पर दवा या इलाज नहीं मिलता था।
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मूलभूत सुविधाएँ जैसे साफ-सफाई, कपड़े और भोजन तक का अभाव था।
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आश्रम प्रबंधन हर महीने 10-12 हजार रुपये की फीस वसूलता था, साथ ही 2.5 लाख रुपये “डोनेशन” और 20,000 रुपये सिक्योरिटी के नाम पर लिए जाते थे।
आश्रम था पूरी तरह अवैध
डॉ. भराला ने बताया कि यह आश्रम किसी भी सरकारी या प्रशासनिक मान्यता के बिना चल रहा था। उन्होंने कहा, “यहाँ रह रहे 42 वृद्धों को तुरंत सरकारी वृद्ध आश्रम में शिफ्ट किया जाएगा और इस अवैध संस्थान को सील कर दिया जाएगा।”
क्यों भेजे जाते हैं बुजुर्ग ऐसे आश्रमों में?
मामले ने एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है: क्या धन और सुविधाओं के पीछे भागते समाज ने अपने बुजुर्गों को त्याग दिया है? जानकारों का मानना है कि:
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संयुक्त परिवारों का टूटना और व्यस्त जीवनशैली ने बुजुर्गों को अकेला कर दिया है।
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कई परिवार “घर की शांति” के लिए बुजुर्गों को आश्रमों में छोड़ देते हैं, बिना यह जाने कि वहाँ उनके साथ कैसा व्यवहार होगा।
क्या कहता है कानून?
भारत में मेंटेनेंस एंड वेलफेयर ऑफ पेरेंट्स एंड सीनियर सिटिजन्स एक्ट, 2007 के तहत बुजुर्गों की देखभाल करना परिवार की जिम्मेदारी है। उन्हें उचित भोजन, आवास और चिकित्सा सुविधा देना कानूनी दायित्व है।
सरकार और समाज की जिम्मेदारी
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सरकार को निजी वृद्ध आश्रमों की सख्त निगरानी करनी चाहिए।
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समाज को यह समझना होगा कि बुजुर्गों की देखभाल केवल पैसे से नहीं, बल्कि प्यार और सम्मान से होती है।
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